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महर

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महर: इस्लाम में वह धनराशि है जो विवाह के समय वर या वर का पिता, कन्या को देता है। यद्यपि यह मुद्रा के रूप में होती है किन्तु यह आभूषण, घरेलू सामान, फर्नीचर, या जमीन आदि के रूप में भी हो सकती है।[उद्धरण चाहिए]

फ़िक़ह और शरीयत (इस्लामीय न्यायशास्त्र) मुस्लिम विधि के अंतर्गत वह धनराशि या दूसरे प्रकार की संपत्ति जिसकी पत्नी, विवाह के कारण, अधिकारिणी हो जाती है।[उद्धरण चाहिए] इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रारंभ में यह विक्रयमूल्य के सदृश या अनुरूप था लेकिन इस्लाम का आरंभ होने के बाद इसे विवाह संबंधी संभोग का मूल्य समझना ठीक नहीं जान पड़ता। अरबी (जूरिस्ट्स) स्मृतिशास्त्रज्ञों ने इसकी तुलना विक्रयमूल्य से इसलिए की है कि मुसलिम व्यवस्था में यह नागरिक संबंधी अनुबंध समझा जाता है।[उद्धरण चाहिए]

इस्लाम के पूर्व अरब में वधूमूल्य को, जो उसके मातापिता को देय था, महर कहते थे तथा जो धन स्त्री को आदर और स्नेहसूचक उपहार के रूप में दिया जाता था उसे सदक कहते थे। दोनों में अंतर समझा जाता था। इस्लाम ने महर को स्त्री के पक्ष में एक वास्तविक व्यवस्था के रूप में परिवर्तित करने का प्रयत्न किया। दुर्दिन के लिये एक साधन के रूप में और सामाजिक दृष्टि से पति के तलाक के असीम अधिकार के मनमाने प्रयोग पर यह एक अंकुश हो गया था। पति को अपनी स्त्री को तलाक देने पर संपूर्ण महर राशि तत्काल देय होगी। आधुनिक संबुद्ध धारणा महर के विषय में यह है कि महर विवाह का पारितोषिक नहीं है वरन् स्त्री के प्रति आदर सूचित करने के लिये पति के ऊपर विधि द्वारा डाला गया दायित्व है।[उद्धरण चाहिए] इसकी पुष्टि इस तथ्य से हो जाती है कि विवाह के समय महर का सविस्तार उल्लेख न होने पर भी विवाह की वैधानिकता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यदि महर वधूमूल्य होता तो विवाह के बाद महर प्रदान करने के लिये अनुबंध होने पर पारितोषिक के अभाव में वह अवैध होता। लेकिन ऐसा प्रतिज्ञापत्र वैध और बलपूर्वक प्रतिपादन योग्य होता है।[उद्धरण चाहिए]

पति महर के रूप में कोई धनराशि अपनी स्त्री के लिये निश्चित कर सकता है, चाहे यह उसकी सामर्थ्य से अधिक ही क्यों न हो और चाहे इस धनराशि के देने के बाद उसके उत्तराधिकारियों के लिये कुछ भी न बच पाए। लेकिन वह किसी भी स्थिति में १० दरहम (लगभग तीन-चार रुपए) से कम की व्यवस्था नहीं कर सकता। महर अनुबंध में उल्लिखित संपूर्ण धनराशि प्रदान करता है जब तक कि किसी धारा सभा की विधि इसके विपरीत न हो। भारतवर्ष के मुसलमानों के पति द्वारा स्त्री को तलाक देने से बचाने के लिये महर प्राय: ऊँचा होता है।[उद्धरण चाहिए] तलाक की स्थिति में स्वीकृत धनराशि उसे देनी ही पड़ेगी और यह तर्क कि स्वीकृत धनराशि अत्यधिक है या पति की सामर्थ्य के बाहर है, पत्नी को उसे देने से बचने के लिये पर्याप्त न होगा। न्यायालय महर की धनराशि निश्चित करने में अपनी इच्छा का तभी प्रयोग कर सकता है जब धारा सभा की विधि द्वारा उसे अधिकार प्राप्त हो। केवल पति की सामर्थ्य तथा स्त्री की स्थिति का सम्यक् विचार ही धनराशि निर्णय करने में निर्णायक तथ्य होगा। उल्लिखित महर विवाह के पहले, विवाह के अवसर पर या उसके बाद निश्चित किया जा सकता है और वैवाहिक जीवन के अंतर्गत इसमें वृद्धि की जा सकती है। यदि पति अवयस्क हो तो महर उसके पिता द्वारा निश्चित किया जा सकता है और पति द्वारा दिया जा सकता हे।[उद्धरण चाहिए] शिया लोगों में प्रचलन है कि यदि लड़का अपनी स्त्री को महर देने में असमर्थ रहा तो पिता व्यक्तिगत रूप से महर देने का उत्तरदायी होता है।[उद्धरण चाहिए]

यदि महर की राशि निश्चित नहीं है तो पत्नी उचित महर की या महरेमिसल की अधिकारिणी होती है। क्या उचित महर है इसका निश्चय करने में इसका ध्यान रखा जाता है कि उसके पिता के परिवार में स्त्रियों को, जैसे उसके पिता की बहनों को, कितना कितना महर मिला है।[उद्धरण चाहिए]

चूँकि महर पत्नी का निहित अधिकार है, अत: उसकी माँग पर यह प्राप्त होना चाहिए और यह प्रांप्ट (तात्कालिक) महर कहा जाता हे। लेकिन कभी कभी मृत्यु से या तलाक से विवाह के विच्छेद पर महर देय होता है और यह डेफर्ड (आस्थगित) महर कहा जाता है। तात्कालिक महर पत्नी द्वारा किसी भी समय विवाह के उपरांत लिया जा सकता है, चाहे विवाह (संभोग द्वारा) पूर्ण या पक्का हुआ हो या नहीं। विवाह के समय यदि यह निश्चित नहीं हुआ हो कि महर तात्कालिक है या आस्थगित, तो शिया विधि के अनुसार वह तात्कालिक समझा जाएगा।[उद्धरण चाहिए]

यद्यपि सुन्नी उसे अंशत: तात्कालिक और अंशत आस्थगित समझते हैं, दोनों का अनुपात रीति या उभय पक्ष की स्थिति पर आधारित होगा।[उद्धरण चाहिए]

पत्नी अपी इच्छा से महर या इसका कोई भाग अपने पति या उसके उत्तराधिकारियों के पक्ष में छोड़ दे सकती है। यह परित्याग वैध होता है, भले ही यह बिना पारितोषिक के हो। यह आवश्यक है कि वह परित्याग उसकी अपनी स्वेच्छा से उसके द्वारा किया गया हो। जब तक कि महर का परित्याग न किया गया हो पत्नी इसके पाने का अधिकार रखती है, यद्यपि विवाह इस शर्त पर अनुबंधित हुआ हो कि वह किसी मुआवजे की माँग न करेगी।[उद्धरण चाहिए]

जब तक कि तात्कालिक महर न दिया जाए पत्नी पति के पास जाना अस्वीकार कर सकती है। यदि पति उसके विरुद्ध वैवाहिक संबंधों के प्रतिपादन के लिए वाद प्रस्तुत करता है, तो महर का न दिया जाना ही पत्नी के लिये यथेष्ट बचाव है और वाद खारिज हो जाएगा।[उद्धरण चाहिए]

दूसरी ओर यदि महर नहीं दिया जाता तो पत्नी या उसकी मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारी इसके लिये उस तिथि से जबकि तात्कालिक महर की माँग की गई हो, या वह अस्वीकार किया गया हो, या जब मृत्यु या तलाक के कारण वैवाहिक संबंध विच्छेद हुआ हो, उसके तीन वर्ष के भीतर, वाद प्रस्तुत कर सकते हैं।[उद्धरण चाहिए]

मृत मुसलमान के उत्तराधिकारी व्यक्तिगत रूप से महर देने के लिये उत्तरदायी नहीं हैं। लेकिन मृत व्यक्ति से पाई हुई संपत्ति के अपने हिस्से के अनुपात में वे उत्तरदायी होते हैं। महर एक ऋण के रूप में है और विधवा अपने मृत पति के दूसरे महाजनों के साथ उसकी संपत्ति से इसके भुगतान की अधिकारिणी होती है, लेकिन उसका अधिकार असुरक्षित महाजन के अधिकार से अधिक नहीं होता।[उद्धरण चाहिए] यदि उसके अधिकार में उसके पति की संपत्ति हो जिसे उसने वैध रूप से बिना धोखे के या दबाव के महर के बदले में हस्तगत किया हो कि वह किराए और मुनाफे से स्वत्व की संतुष्टि कर सके, तो वह अपने पति के दूसरे उत्तराधिकारियों के विरुद्ध उस कब्जा को तब तक कायम रख सकती है तब तक कि महर के स्वत्व की संतुष्टि न हो जाए।[उद्धरण चाहिए]

कुरआन में महर

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सूरा सूरा अल्-ब-क़-रा - आयत 236

तुमपर कोई पाप नहीं, यदि तुम स्त्रियों को तलाक़ दे दो जबकि तुमने (अभी) उन्हें न हाथ लगाया हो और न उनके लिए कुछ महर निर्धारित किया हो। (लेकिन) उन्हें रीति के अनुसार कुछ सामान दे दो; विस्तार वाले पर अपनी क्षमता के अनुसार तथा तंगदस्त पर अपनी क्षमता के अनुसार देय है। सत्कर्म करने वालों पर यह हक़ है।[1]

सूरा सूरा अल्-ब-क़-रा - आयत 237

और यदि तुम उन्हें इससे पहले तलाक़ दे दो कि उन्हें हाथ लगाओ, जबकि तुम उनके लिए कोई महर निर्धारित कर चुके हो, तो तुमने जो महर निर्धारित किया है उसका आधा देना अनिवार्य है, सिवाय इसके कि वे (पत्नियाँ) माफ़ कर दें, अथवा वह पुरुष माफ़ कर दे जिसके हाथ में विवाह का बंधन[155] है। और यह (बात) कि तुम माफ़ कर दो तक़वा (परहेज़गारी) के अधिक क़रीब है। और आपस में उपकार करना न भूलो। निःसंदेह अल्लाह उसे ख़ूब देखने वाला है, जो तुम कर रहे हो।

सूरा सूरा अन्-निसा - आयत 20

और यदि तुम एक पत्नी के स्थान पर दूसरी पत्नी लाना चाहो और तुमने उनमें से किसी को (महर में) ढेर सारा धन दे रखा हो, तो उसमें से कुछ न लो। क्या तुम उसे अनाधिकार और खुला गुनाह होते हुए भी ले लोगे।

सूरा सूरा अन्-निसा - आयत 24

तथा उन स्त्रियों से (विवाह करना हराम है), जो दूसरों के निकाह़ में हों, सिवाय तुम्हारी दासियों] के। यह अल्लाह ने तुम्हारे लिए अनिवार्य कर दिया है। और इनके सिवा दूसरी स्त्रियाँ तुम्हारे लिए ह़लाल कर दी गई हैं कि तुम अपना धन (महर) खर्च करके उनसे विवाह कर लो (बशर्ते कि तुम्हारा उद्देश्य) सतीत्व की रक्षा हो, अवैध तरीके से काम वासना की तृप्ति न हो। फिर उन औरतों में से जिनसे तुम लाभ उठाओ, उन्हें उनका महर अवश्य चुका दो। तथा यदि महर निर्धारित करने के बाद आपसी सहमति (से कोई कमी-बेशी) कर लो, तो तुमपर कोई गुनाह नहीं है। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।

सूरा सूरा अन्-निसा - आयत 25

और तुममें से जो व्यक्ति ईमान वाली आज़ाद स्त्रियों से विवाह करने की क्षमता न रखे, वह तुम्हारे हाथों में आई हुई तुम्हारी ईमान वाली दासियों से विवाह कर ले। अल्लाह तुम्हारे ईमान को भली-भाँति जानता है। तुम सब परस्पर एक ही हो। अतः तुम उनके मालिकों की अनुमति से उन (दासियों) से विवाह कर लो और नियमानुसार उन्हें उनका महर चुका दो। जबकि वे सतीत्व की रक्षा करने वाली हों, खुल्लम खुल्ला व्यभिचार करने वाली न हों, तथा गुप्त रूप से व्यभिचार के लिए मित्र रखने वाली न हों। फिर यदि वे विवाहित हो जाने के बाद व्यभिचार करें, तो उनपर आज़ाद स्त्रियों का आधा दंड है। यह (दासियों से विवाह की अनुमति) तुममें से उसके लिए है, जिसे व्यभिचार में पड़ने का डर हो, और तुम्हारा धैर्य से काम लेना तुम्हारे लिए बेहतर है और अल्लाह अत्यंत क्षमाशील, बड़ा दयावान् है।

सूरा सूरा अल्-माइदा - आयत 5

आज तुम्हारे लिए अच्छी पवित्र चीज़ें हलाल कर दी गईं और उन लोगों का खाना तुम्हारे लिए हलाल है जिन्हें किताब दी गई, और तुम्हारा खाना उनके लिए हलाल है, और ईमान वाली औरतों में से पाक-दामन औरतें तथा उन लोगों की पाक-दामन औरतें जिन्हें तुमसे पहले किताब दी गई, जब तुम उन्हें उनके महर दे दो, इस हाल में कि तुम विवाह में लाने वाले हो, व्यभिचार करने वाले नहीं और न चोरी-छिपे याराना करने वाले। और जो ईमान से इनकार करे, तो निश्चय उसका कर्म व्यर्थ हो गया तथा वह आख़िरत में घाटा उठाने वालों में से है।

सूरा सूरा अल्-अह़ज़ाब - आयत 50

ऐ नबी! निःसंदेह हमने आपके लिए आपकी वे पत्नियाँ हलाल (वैध) कर दी हैं, जिन्हें आपने उनका महर चुका दिया है, तथा वे लौंडियाँ (भी) जो आपके स्वामित्व में हैं, उन लौंडियों में से जो अल्लाह ने ग़नीमत के धन से आपको प्रदान की हैं। तथा आपके चाचा की बेटियाँ, आपकी फूफियों की बेटियाँ, आपके मामा की बेटियाँ और आपकी मौसियों की बेटियाँ, जिन्होंने आपके साथ हिजरत की है। तथा वह ईमान वाली महिला भी, जो स्वयं को नबी के लिए दान कर दे, यदि नबी उससे विवाह करना चाहे। यह विशेष रूप से आपके लिए है, अन्य ईमान वालों के लिए नहीं। निश्चय ही हम जानते हैं जो कुछ हमने उनपर उनकी पत्नियों तथा उनके स्वामित्व में आई हुई दासियों के संबंध में फ़र्ज़ किया है; ताकि तुमपर कोई तंगी न रहे। और अल्लाह बहुत क्षमा करने वाला, अत्यंत दयालु है।

सूरा सूरा अल्-मुम्तह़िना - आयत 10

ऐ ईमान वालो! जब तुम्हारे पास ईमान वाली स्त्रियाँ हिजरत करके आएँ, तो उन्हें जाँच लिया करो। अल्लाह उनके ईमान को ज़्यादा जानने वाला है। फिर यदि वे तुम्हें ईमान वाली मालूम हों, तो उन्हें काफ़िरों की ओर वापस न करो। न ये स्त्रियाँ उन (काफ़िरों) के लिए हलाल हैं और न वे (काफ़िर) इनके लिए हलाल होंगे। और उन काफ़िरों ने जो खर्च किया है, वह उन्हें दे दो। तथा तुमपर कोई दोष नहीं है कि उनसे विवाह कर लो, जब उन्हें उनका महर दे दो। तथा तुम काफ़िर स्त्रियों के सतीत्व को रोक कर न रखो और जो तुमने ख़र्च किया है वह माँग लो। और वे (काफ़िर) भी माँग लें, जो उन्होंने खर्च किया है। यह अल्लाह का फैसला है। वह तुम्हारे बीच फैसला करता है। तथा अल्लाह सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।

हदीस में महर

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अनस बिन मालिक (रज़ियल्लाहु अन्हु) कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने सफ़िय्या (रज़ियल्लाहु अंहा) को गुलामी से मुक्त किया और उनकी मुक्ति को उनका महर बनाया।[2]

अनस बिन मालिक- रज़ियल्लाहु अनहु- से वर्णन है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अब्दुर्रहमान बिन औफ़ पर ज़ाफरान (केसर) का रंग देखा तो फ़रमायाः क्या बात है? तो उन्होंने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! मैं ने शादी कर ली है। फ़रमायाः उसका महर क्या है? कहाः गिठली समान सोना। फ़रमायाः अल्लाह बरकत दे, वलीमा करो, चाहे एक बकरी से ही क्यों न हो। [3]

सलमा बिन अब्दुर रहमान कहते हैंः मैंने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की पत्नी आइशा (रज़ियल्लाहु अंहा) से पूछा कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नियों) का महर कितना होता था? उन्होंने कहाः आपकी पत्नियों के लिए आपका महर बारह ऊक़िया और एक नश्श था। उन्होंने कहाः क्या जानते हो कि नश्श क्या है? मैंने कहाः नहीं! तो कहाः "आधा ऊक़िया। इस तरह ये पाँच सौ दिरहम हुए। यही अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) द्वारा आपकी पत्नियों को दिया गया महर है"। [4]

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. "अर्थों का अनुवाद सूरा सूरा अल्-ब-क़-रा - हिंदी अनुवाद". पवित्र क़ुरआ विश्वकोश. Retrieved 2025-02-12.
  2. "हदीस: अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने सफ़िय्या (रज़ियल्लाहु अंहा) को गुलामी से मुक्त किया और उनकी मुक्ति को उनका महर बनाया।". अनूदित हदीस-ए-नबवी विश्वकोश. Retrieved 2025-02-12.
  3. "हदीस: ऐ अल्लाह के रसूल! मैं ने शादी कर ली है। फ़रमायाः उसका महर क्या है?, कहाः गिठली समान सोना। फ़रमायाः अल्लाह बरकत दे, वलीमा करो, चाहे एक बकरी ही क्यों न हो।". अनूदित हदीस-ए-नबवी विश्वकोश. Retrieved 2025-02-12.
  4. "हदीस: आइशा (रज़ियल्लाहु अंहा) से पूछा गया कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नियों) का महर कितना होता था? उन्होंने कहाः आपकी पत्नियों के लिए आपका महर बारह ऊक़िया और एक नश्श (आधा ऊक़िया) था।". अनूदित हदीस-ए-नबवी विश्वकोश. Retrieved 2025-02-12.

बाहरी कड़ियाँ

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